बदलता समय

पता है, हम भी एक ज़माने में ठीक ठाक ही थे 
 फिर, इन कमबख्त वादियों ने,
 हमे शायर बना दिया 

और फिर बारिश का मौसम आया 
रूखे-सूखे मन को भिगोने 
बंजर बने जज़्बातों पर 
उम्मीद के फुल उगाने 
पता है, हम भी कभी काग़ज़ की नाव चलाया करते थे 
फिर, 'ज़िम्मेदारी' नामक लहर ने 
एक दिन इसे डूबा दिया 

और फिर सर्दी का मौसम आया 
जली हुई आशाओं को बुझाने 
गुस्से से तिलमिला हुए 
'अपनों' को समझाने -
कि, हम भी बात-बात पर ख़फ़ा हुआ करते थे 
फिर, इस ज़माने ने
उदासीन (indifferent) बनना सीखा दिया 

फिर गर्मी का मौसम आया 
सहमी हुई परछाई को वापिस जगाने 
ठंडे पडे हुए रिश्तों को, 
धूप की दिशा दिखाने 
पता है, हम भी अक्सर गीत गुनगुनाया करते थे 
फिर गर्मी में सेकी हुई खामोशी ने, 
हमें बेज़ुबान बना दिया 

हम भी एक ज़माने में ठीक ठाक ही थे 
फिर, इन कमबख्त वादियों ने,
हमे शायर बना दिया 


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