सूत विश्वास का

एक समय की बात है यारो,
सुनो बड़े ही ध्यान से 
मुन्नी के हालात कठिन 
लेकिन मस्ती में रहती शान से 

अपने भोले (भाई ) को देख 
आंखे नर्म हो जाती
भला ३ साल के फ़रिश्ते को 
epilapsy की बीमारी क्यों सताती ?
भोले को seizure के दौरे आते  
तब यह बीमारी,उसे कम, 
मुन्नी को ज़्यादा डराती 

एक दिन माता पिता को सुना 
कुछ ३० लाख का खर्चा है 
घर, ज़मीन सब कुछ दांव पर 
कुछ शेष नहीं बचा है 
अब तो कोई करिश्मा ही काम आएगा 
पता नहीं Thakorji ने खेल कैसा रचा है 

बड़ी अस्पता के neurosurgen 
नीरज अग्रवाल की उम्मीद है
अगर वो इलाज़ न करे 
फ़िर हमारे लिए क्या दिवाली, क्या ईद है 

मुन्नी अपने गुल्लक को तोड़ 
सभी पैसे निकालती 
हर रोज़ बाज़ार के, दो चक्कर जरूर लगाती 
काश ऐसी कोई दवाई मिले 
जो अपने भय्यू को ठीक करें 

एक दिन, दवाई के दुकान पर पहुंची 
"पूरे ३० रुपये है मेरे पास 
और थोड़ा Thakorji पर विश्वास 
"यहाँ epilepsy का इलाज मिलता है"
आवाज़ आई -
"चल हट यहाँ से, कोई भी मुँह उठाए चला आता है"
पीछे खड़ा सज्जन सब ध्यान से सुनता है 
हताश हुई मुन्नी को इशारा कर के बुलाता है 

"इतने मासूम चहरे पर 
उदासी की कैसी शिकन ?"
"अपने भय्यू को बचाना है 
दिया है मैंने अटूट वचन"
"चलो फिर तुम्हारा वचन पूरा करते है,
आपके भय्यू का हम इलाज करते है"

माता पिता सोच रहे थे 
हमारे घर प़डा यह कैसा अकाल 
तू ही है आखिर सहरो,  
अब तो बंसी बजादे नंदलाल 
तभी द्वार की घंटी बजी 
और देखा मुन्नी संग खड़े मशहूर nuerosurgon - नीरज अग्रवाल 

२ महीने बाद :
कुछ समज न आया, कैसे हुआ 
अद्वित्य, अद्भुत चमत्कार 
बिच मजधार पर नांव अटकी,
किसने लगाई पार 
जब पैसो का इंतज़ाम न हुआ 
और आशा बनी अचेत 
और पता नहीं डॉ. साहब क्यों बोले 
मिल गए पैसे वो भी सूत समेत 

मुन्नी मंद मंद मुस्कराते सोचती, 
"मैंने हल निकाला आपकी दुविधा का
दुनिया में मोल होता है, हर सुख सुविधा का 
हमने भी डॉ साहब को पैसे दिए 
पुरे तीस रूपये और ऊपर से सूत Thakorji के विश्वास का 

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