उलझन

उलझन 

लिखने का दिल करें, और कोई विषय न हो 
विषय मिले, फिर शब्द न हो 
शब्द खोद के निकाले, फिर ज़ज्बात न हो 
और ज़ज्बात उबले, फिर उसे महसूस करने के लिए 
वापस दिल न हो...

जब किसीसे बात करने का मन करें 
पर कोई बात करने वाला न हो 
फिर कोई मिल भी जाए 
तभी बात करने का मन न हो
और जब मन करे, 
शब्द अधरों तक पहुंचे,
तब पता चले, कि अब हमारी बात में, 
वो बात ही न हो 

ऐसे चंगुल में फंसे, 
जहाँ बाहर निकलने की राह न हो 
अगर ज़रिया मिल भी जाए 
फिर मंजिल पाने की चाह न हो 
अगर कुछ हासिल किया, क्या फायदा ?
अखिर में कुछ हाथ आना ही न हो 

हर एक कहानी का अंत आता है 
आपको वो अंत पसंद हो न हो 
अखिर, सभी किरदार अपने रूप में आएंगे,
आपकी कहानी ख़त्म हो न हो 
आज तुम भी अपनी भूमिका अच्छे से निभा लो,
कल तुम्हारा वक़्त हो न हो 

इसीलिये, हम अपनी कहानी कहते रहते हैं 
कल तुम, तुम ही रहोगे 
पर शायद, हम, हम न हो 


shingala_the_storyteller

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