खुदा ग़वाह
एक फ़क़ीर अपनी मौज में चलता हुआ
दुनिया के गीले शिकवे को भूलाता हुआ
अपने मालिक को याद करता रहा,
बारिश जोरो की थी ,
भूख बेकाबू कर रही थी ,
करें भी तो क्या,पैसा छोड़ो,
उस फ़क़ीर के कुर्ते में ज़ेब भी नहीं थी
एक दुकान पर आके खड़ा हो गया
नाश्ते को बस निहारता गया
अचंभित हुआ, जब दूकानवाले ने,
एक प्लेट जलेबी और गरम दूध
युहीं उस फ़क़ीर को थमा दिया
वाह मालिक तुझे मेरी इतनी फ़िक्र
ख्वाइश पूरी करदी, बिना मेरे ज़िक्र
फिर से अपनी मौज में चल दिया
बारिश का सारा मज़ा लूटता गया
ज़ोर से एक खड्डे में छलांग मारी
गंदे पानी ने पीछे खड़ी लड़की के कपड़ो को ख़राब किया
उसका पति तिलमिलाया
फ़क़ीर माफ़ी मांग ही रहा था
उसके पहले ही, ज़ोर से चाटा जड़ दिया
यह सोचकर फ़क़ीर मुस्कुराया,
कभी गरम दूध, कभी चाटा खिलाया
मालिक, बड़ी गजब तेरी माया
कुछ दूर जाने के बाद,
उस लड़के के साथ हुई दुर्घटना
उसकी पत्नी, स्तब्ध रह गयी
क्या उस फ़क़ीर के कारण यह हुआ
१० मिनिट में क्या से क्या हो गया
जब फ़क़ीर से पूछा तभी उन्होंने बताया
आपके कपड़ो पर पानी के छींटे पड़े
आपके पति से यह ना देखा गया
मुज़पर आपके पति का हाथ पड़ा
शायद मेरा मालिक यह नहीं देख पाया

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