अधूरी कहानी

कुछ लिखू, 
और फिरसे हाथों को रोक दू
कलम दौड़े, 
और रास्ते में उसको टोक दू
क्योंकि कुछ कहानियाँ अधूरी अच्छी होती है 
और कहानी पूरी न हो, 
तो लगता है,
अपने ज़ज्बात की पुड़िया बनाकर दिल के कोई छोटे से कमरे में 
उसे झोंक दू

शब्द चीख रहे है, 
पन्नों पर स्याही उबल रही है 
पूर्ण विराम आज थक नहीं रहा 
अल्प विराम को चुनौती दे रहा 
इन्हें समझाना चाहता हूँ 
कि भाई, निश्कर्ष (climax) हमेशा मुमकिन नहीं 
आज आधे रास्ते को ही मंजिल समझ लू 
और अपनी चलती गाड़ी को बीच में कहीं रोक दू

सुना है, वक़्त बदलता हैं 
ज़माने को अपने रंग दिखाता हैं 
पर शायद मुझे इसी पल में जीना है 
गहरे सन्नाटे से बातें करना हैं 
पूछना है, 
कहानी में खुद पूरी कर दू ?
या बीच में ही उसे कहीं छोड़ दूँ ?
कुछ लिखू, या हाथों को कहीं रोक दू

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