नज़रिया
चलो, आज खुदको, तुम्हारी नज़र से नहीं
खुद की नज़र से देखें
थोड़ा तुम भी मेरा हाथ पकड़ लो
थोड़ा हम भी खुदको सम्भाले
तुम्हारे सहारे के मोहताज जरूर है
इतनी बेबसी कल नहीं थी,
पर आज जरूर है
थोड़ा तुम भी एक बार मुड़कर देखों
थोड़ा हम भी नए रंग आजमाए
तुम्हारी इतनी आदत, हमें अच्छी नहीं
तुम्हारें चेहरे में मगरूर,
अपने चेहरे की हमें याद नहीं
हमारे पास भी एक दिल था...... शायद,
जो धड़कना भूल गया, पर हमें फ़रियाद नहीं
सुनो, थोड़ा तुम भी आज मुस्कुरा दो
हम भी पुराने नजरिये को छुपाए
हर पल सोचना, तुम क्या सोचते हो
हमारी सासों को, तुम्हारी यादों से
कितना तोलते हो
हम तो शब्दों को मानते हैं,
और तुम आँखों से कितना बोलते हो
चलो तुम्हें छोड़कर, खुद के लिए कुछ लिखें
आज, खुदको तुम्हारी नज़र से नहीं
खुद की नज़र से देखें
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