मेरा हक़
सपने देखने का हक़ हमे आज भी है
अपनी किस्मत से लड़ने का हक़ हमे आज भी है
तो क्या हुआ कुछ जिम्मेदारियों का बोज़ है
पर ग़म के बाजार में, हँसी के दो पल खरीदने का हक़
हमे आज भी है
सड़क पर चलते मुसाफिर से पूछो, तो जाने
अपनी मंज़िल का पता न हो, तो किसकी माने
अपने मन की, जो पहले ही हार मान चूका है
या दिमाग की, जो हर पल नयी दिशा दिखा चूका है
मंज़िल को पाने की दौड़ में भूल गया
कि सफ़र में मौज मानाने का हक़ हमे आज भी है
ज़िंदगी से टूटे है तो क्या हुआ
अपने थोड़े रूठे है तो क्या हुआ
भाई, इस पल का भी मज़ा ले
अरे ! कुछ आँसू ही तो टपके है, और क्या हुआ ?
वक़्त आएगा, और तुम पीछे देखकर कहोगे
कि उम्मीद से उम्मीद रखने का हक़ हमे आज भी है
बस इस पल का मज़ा लो, कल किसने देखा
अगर आज को कल में जिओगे, तो मिलेगा बस धोखा
कल की तैयारी में, यह मत भूल जाना
कि, ज़िंदा रहने का हक़ हमे आज भी है
- अंकित पंकज शिंगाला
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