मेरे दिल की किताब
पूरी किताब खत्म नहीं हुई
कुछ अध्याय अभी शेष है
यह एक कहानी कहना चाहती है
अपने दर्द , अपनी खुशियाँ फैलाना चाहती है
पर कुछ किस्सों ने ऐसा उलझाया
रोए के हसे, यह किताब खुद नहीं समज पाती है
कहती है , अपने तर्क को बाजु में रखो
हर एक किरदार का यहाँ अलग भेष है
पूरी किताब खत्म नहीं हुई
कुछ अध्याय अभी शेष है
कहीं, कहानियों में डूब जाता हूँ
अच्छे किस्सों में कहीं खो जाता हूँ
लगता है, की पन्ने खत्म ना हो
और कभी बीच में ही ऊब जाता हूँ
सभी किरदारों में कभी कितना अनुराग है
और कभी छुपा हुआ कितना द्वेष है
पूरी किताब खत्म नहीं हुई
कुछ अध्याय अभी शेष है
नया दिन और अगला पन्ना फिराया,
मानो एक नया उमंग ले आया
शब्द वही, लेखक वही
पर किताब ने अर्थ एक नया समझाया
मेरे कागज़ भले गल गए हो
लेकिन पढ़नेवाले का नजरिया विशेष है
पूरी किताब खत्म नहीं हुई, साहब
कुछ अध्याय अभी शेष है
- अंकित पंकज शिंगाला
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