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Showing posts from July, 2023

ज़ख्म

सब चला गया, बस कहानियाँ रह गई  कुछ लम्हें याद हैं, पर उन यादों को फ़रियाद हैं  कि, ज़ख्म भर गया, पर निशानियाँ रह गईं  यह निशानी अच्छी है  हमें याद दिलाती है कि, आप लाख कोशिश करे  कुछ न कुछ छूट ही जाएगा  अगर शिद्दत से किसीको चाहे,  वो बेवजह रूठ ही जाएगा  अब रिश्ते रहे, न रहे, पर जिम्मेदारियाँ रह गई  कमबख्त, ज़ख्म भर गया, पर निशानियाँ रह गईं यह ज़ख्म भी अच्छा है  सिखाता है, कि लगाव, किसी व्यक्ति या कोई चीज से ज्यादा समय नहीं टिकेगा अगर टिक गया, तो उसके शिकंजे में जरूर फंसेगा  सच हैं, आज कोई साथ नहीं रहा, बस तन्हाइयाँ रह गईं  ज़ख्म भर गया पर उसकी निशानियाँ रह गईं खैर, बिता हुआ कल, बीत गया  आने वाला कल, किसने देखा  वापस गिरेंगे, चोट लगेगी  मरहम पट्टी लगाकर, कर देंगे अनदेखा  चलो, आज उस ज़ख्म के निशान को सजाते हैं  उसे थोड़ा सलाहकार, खुद को समझाते है  कि पीछे मुड़कर देख,  ये तकलीफें जाने अनजाने कितनी कहानियाँ कह गईं  सुनो,  ज़ख्म भी अच्छा हैं,  वो अपने आप भर जाएगा,  बस इसे याद दि...

बस 5 मिनट

अरे भाई, अभी तो माहौल बनाना हैं  खुद का खुद से पर्दा उठाना है  हम कौन हैं, हमारी कहानी के किरदार कौन हैं  सबका परिचय देना है  और आप कहते है, 5 मिनट  हर पड़ाव पर, हमें हराकर चुनौति जीत गई  जीवन के नुस्खे सीखते सीखते, सदियाँ बीत गई  यहाँ वो सदियाँ कुछ लम्हों में दिख जाती है  पर दोपहर खत्म होने पर जब शाम मुस्कुराती है  तब जनाब कहते है 5 मिनट  काश समय का अंदाजा, समय को न हों  यह मंजर बना रहे, कोई रोक न हो  घड़ी के कांटे आज एक दूसरे से बगावत करें  पर कोई चाहता है हमारा सपना सच न हो, और वो कहता है, बस 5 मिनट  क्या बोले, क्या नहीं, कितने टूटे हैं, हमें खुद अंदाजा नहीं  कहाँ से शुरू करें, कहाँ ख़त्म,  हमारे जज़्बात पर, हमारा कब्ज़ा नहीं  कुछ अधूरा है, जो यहाँ मुक्कमल करने आए हम तो समझ गए, पर कमबख्त दिल को लज्जा नहीं  अभी, इस दिल को कैसे समझाए  भाई, बस 5 मिनट