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अधूरी कहानी

कुछ लिखू,  और फिरसे हाथों को रोक दू कलम दौड़े,  और रास्ते में उसको टोक दू क्योंकि कुछ कहानियाँ अधूरी अच्छी होती है  और कहानी पूरी न हो,  तो लगता है, अपने ज़ज्बात की पुड़िया बनाकर दिल के कोई छोटे से कमरे में  उसे झोंक दू शब्द चीख रहे है,  पन्नों पर स्याही उबल रही है  पूर्ण विराम आज थक नहीं रहा  अल्प विराम को चुनौती दे रहा  इन्हें समझाना चाहता हूँ  कि भाई, निश्कर्ष (climax) हमेशा मुमकिन नहीं  आज आधे रास्ते को ही मंजिल समझ लू  और अपनी चलती गाड़ी को बीच में कहीं रोक दू सुना है, वक़्त बदलता हैं  ज़माने को अपने रंग दिखाता हैं  पर शायद मुझे इसी पल में जीना है  गहरे सन्नाटे से बातें करना हैं  पूछना है,  कहानी में खुद पूरी कर दू ? या बीच में ही उसे कहीं छोड़ दूँ ? कुछ लिखू, या हाथों को कहीं रोक दू

नज़रिया

चलो, आज खुदको, तुम्हारी नज़र से नहीं  खुद की नज़र से देखें  थोड़ा तुम भी मेरा हाथ पकड़ लो  थोड़ा हम भी खुदको सम्भाले  तुम्हारे सहारे के मोहताज जरूर है  इतनी बेबसी कल नहीं थी, पर आज जरूर है  थोड़ा तुम भी एक बार मुड़कर देखों  थोड़ा हम भी नए रंग आजमाए  तुम्हारी इतनी आदत, हमें अच्छी नहीं  तुम्हारें चेहरे में मगरूर,  अपने चेहरे की हमें याद नहीं  हमारे पास भी एक दिल था...... शायद, जो धड़कना भूल गया, पर हमें फ़रियाद नहीं  सुनो, थोड़ा तुम भी आज मुस्कुरा दो  हम भी पुराने नजरिये को छुपाए  हर पल सोचना, तुम क्या सोचते हो  हमारी सासों को, तुम्हारी यादों से  कितना तोलते हो  हम तो शब्दों को मानते हैं,  और तुम आँखों से कितना बोलते हो  चलो तुम्हें छोड़कर, खुद के लिए कुछ लिखें  आज, खुदको तुम्हारी नज़र से नहीं  खुद की नज़र से देखें