तुम हमें चाहो या नहीं
तुम हमें चाहो या नहीं, तुम्हारी मर्ज़ी
तुम्हारी चाहत के हम मोहताज नहीं
हम ठीक नहीं होगे, शायद, जख्म गहरा है
और पता है, इसका कोई इलाज नहीं
अरे, तुम्हारी यादों में भूल गया
कि मेरी भी सासें चल रही है
तुम्हारे ख़यालो का सैलाब उभरा है
और अगर कुछ कहना हो, तो हमारे पास अल्फ़ाज़ नहीं
शीशे में अब हम खुदको नहीं पहचानते
बर्सो हो गए खुदको सवारे
हमारी सूजी हुई आँखों का इशारा है
जो वक़्त हमारा कल था, वो आज नहीं
सुनो, तुम्हे चाहने के लिए ,
हमे तुम्हारी ही ज़रुरत नहीं
तुम्हे भूलकर भी भूलाना, हमारे बस में नहीं
तुम भले हमे भूल जाओ, कोई ऐतराज़ नहीं
आज सबकुछ पुरा होने के बाद भी कुछ अधूरा है
जाने दो, हम आपसे नाराज नहीं
तुम हमें चाहो या नहीं, तुम्हारी मर्ज़ी
तुम्हारी चाहत के हम मोहताज नहीं
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