मुझे अपनी मस्ती में रहने दो
दो पल की ज़िन्दगी है
साहब, मुझे अपनी मस्ती में रहने दो
मेरी किताब के पन्ने सीमित है
कुछ पर जिम्मेदारी का बोझ,
कुछ पर दर्द भरे किस्सों का अतीत है
उम्मीद से भरा अब अगला पन्ना खोलने दो
साहब, मुझे अपनी मस्ती में रहने दो
दो वक़्त की रोटी और कितना तमाशा
छन सिक्को ने संबंधो को क्या खूब तराशा
सभी उल्जनो में पड़ना है, पर उलझना नहीं
बस सुबह की चाय हमे चैन से पीने दो
साहब, मुझे मेरी मस्ती में रहने दो
घड़ी के कांटो से मेरी पुरानी दुश्मनी है
जब वक़्त को रोकना चाहे, तभी दौड़ती है
और कभी मिनिटो को घंटो खींचती है
समय के साथ, ये खट्टी, मीठी रोकझोक चलने दो
साहब, मुझे मेरी मस्ती में रहने दो
दो पल की ज़िन्दगी है
साहब, मुझे अपनी मस्ती में रहने दो
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