Posts

Showing posts from October, 2021

Weekend का बचपन

Image
  Weekend पर  वही आकर रुके जहाँ से शुरुआत की थी  जब ज़िन्दगी ने पहली बार बचपन से मुलाक़ात की थी  जब न खोने को कुछ था  और न पाने की चाहत थी  बस हम थे और हमारी ख़ुशी  जो किसी की महोताज नहीं थी  भाई यह जिम्मेदारी क्या होती है,  उसका  मतलब जो नहीं जानते  धन, प्रतिष्ठा, मान, सम्मान  -  यह नक़ाब को जो नहीं पहचानते  और टोकती थी यह दुनिया तब भी , पर हम किसी का कहाँ मानते  चमच से नहीं , हाथो से खाना है  बिना बाल बनाये, मुँह बनाना है  अपने दोस्तों को फिर डराना है  और डर का मज़ा खुद भी लेना है  दोस्तों को चिढ़ाने का मज़ा कुछ और था  खेलते हुए गिरने का मज़ा कुछ और  था  पता था, एक हाथ मिल जायेगा उठाने के लिए  हस्ते हुए, गिरकर उठने का मज़ा कुछ और था  वक़्त बितता गया, मानो, एक हवा के जोके के जैसे  पलकें उठी, और सबकुछ बदल गया हो जैसे  पर बचपना थोड़ा रह गया,  एक फूल में छुपी उसकी खुशबू के जैसे  शक्ल भले बदल जाए,  अक्ल भले तेज हो जाये  पर दिल से पूछे, तो...